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अलीगढ : पितृ पक्ष में तर्पण का विशेष महत्व है,इसमें अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए जल का दान किया जाता है,इस दौरान पवित्र कुशा घास धारण किया जाता है,उसके बिना इस प्रक्रिया को अधूरा माना जाता है। पितृ पक्ष में किये जाने वाले तर्पण में कुशा का क्या महत्त्व है इसको लेकर वैदिक ज्योतिष संस्थान के पंडित कपिल शर्मा बताते हैं कि श्राद्ध को पितृ पक्ष के दौरान ही किया जाता है और इसके नियम तर्पण से जटिल होते हैं,तर्पण के दौरान प्रयोग की जाने वाली कुशा घास की उत्पत्ति भगवान विष्णु के रोम से हुई है,और मान्यता अनुसार कुश में तीनों देवों का वास होता है,अग्र भाग में भगवान शिव, मध्य भाग में भगवान विष्णु और मूल भाग में ब्रह्मा जी का वास होने से इसे पवित्र माना जाता है।
समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला था तो उसकी कुछ बूदें एक प्रकार की घास पर भी पड़ गई थीं जिससे वो अमर हो गयी। यह घास कभी नष्ट नहीं होती। सूखने के बाद उस पर नई घास निकल आती है,यह ठीक वैसे ही होता है जैसे आत्मा मानव शरीर त्याग कर किसी अन्य में प्रवेश करती है। कुशा के बिना तर्पण करने से जलदान पितरों तक नहीं पहुंच पाता है,इसलिए हमेशा कुश धारण करने के बाद ही पितरों को जल चढ़ाना चाहिए। कुश के आगे वाले भाग से तर्पण करने से पितृ जल को ग्रहण कर आशीर्वाद देते हैं,पितरों के खुश होने से पितृ दूष दूर होता है और इंसान के जीवन में धन, सुख, समृद्ध का विस्तार होता है,साथ ही लंबे समय से चली आ रही समस्याओं से निवृत्ति होती है।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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