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सिकंदराराऊ : होलिका दहन की अग्नि शांत होने के पश्चात प्रथम सोमवार सप्तमी /अष्टमी को मुख्य रूप से उत्तर भारत, गुजरात, हरियाणा में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व बासौड़ा मनाया जाता है।इस दिन से मौसम में बदलाव आने लगता है और गर्मियों के मौसम की शुरुआत भी होने लगती है।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बासौड़ा के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि बासोड़ा शब्द का अर्थ है बासा, इस बार यह पर्व 13 मार्च सोमवार को मनाया जा रहा है परन्तु जो लोग तिथि के अनुसार इस पर्व को मनाते हैं, वह 14 और 15 मार्च को यह पर्व मना सकते हैं। शीतला पूजन के दिन रसोई में आग जलाना वर्जित होता है। अतः इस दिन से एक दिन पहले पूरा भोजन तैयार कर अगले दिन यानि बासोड़ा पर उसी भोजन का सेवन किया जाता है।ऋतु परिवर्तन संक्रमण के दौरान इस अवधि में त्वचा से जुड़े बहुत सारे रोग और संक्रमण होते हैं जो कि देवी शीतला की पूजा एवं आराधना से ठीक हो जाते हैं।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला को कारण के साथ ही समाधान भी माना जाता है। वह चेचक जैसी महामारी की देवी है। मान्यतानुसार शीतला माता एक बलि अग्नि से आई थीं। उन्हें भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि जब तक वह अपने साथ उड़द दाल का बीज लेकर नहीं जाएगी, तब तक वह हमेशा इंसानों द्वारा पूजी जाएगी। एक बार वह अन्य देवताओं का दौरा कर रही थी तभी सभी बीज चेचक के हानिकारक कीटाणुओं में बदल गए। और फिर जिसने भी देवी का दौरा किया वह चेचक और बुखार से पीड़ित हो गया इस परिस्थिति को देखते हुए देवताओं ने देवी शीतला को इन कीटाणुओं के साथ पृथ्वी पर जाने के लिए आग्रह किया जहां वह पहली बार भगवान शिव के दृढ भक्त राजा बिराट के राज्य में पहुंचीं उन्होंने एक ऐसी जगह की पेशकश की जहां उनकी पूजा की जा सकती थी, लेकिन शीतला माता को भगवान शिव के ऊपर एक सर्वोच्च स्थान देने से मना करने के कारण शीतला माता उग्र हो गई और नाराज हो गयीं जिस कारण बड़ी संख्या में लोग महामारी से ग्रस्त हो गए और उनमें से कईयों की मृत्यु भी हो गई। इस पर, राजा बिराट ने गलती स्वीकार कर देवी से क्षमा प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने सभी लोगों को ठीक कर दिया इसी दिन से माँ शीतला को प्रसन्न करने के लिए बासोड़ा का व्रत रखा जाता है।
बासौड़ा पूजन विधान के विषय में स्वामी जी ने बताया कि शीतला देवी की आराधना हेतु ब्रह्मचर्य अत्यंत आवश्यक है । इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को पूर्व संध्या पर सात्विक आहार का पालन करना चाहिए तथा चावल, हलवा, पूरी, एक खीर या रबड़ी आदि को बसौड़ा के लिए पहले से तैयार करने के बाद अपनी रसोई को साफ करना चाहिए, बसोड़ा व्रत के दिन सुबह, जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद देवी शीतला को हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, सिंदूर, मेहंदी, काजल, लाल चुनरी, कलावा, केला, नारियल आदि अर्पित कर प्रसाद अर्पित करना चाहिए उसके बाद गेहूं के आटे का दीपक बनाकर सरसों के तेल अथवा घी का दीपक जलाकर देवी की आरती कर आशीर्वाद लेकर दीर्घायु की कामना करें।

vinay

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