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अलीगढ़ : सन्तान की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पूर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है। यह व्रत भी करवाचौथ की तरह निर्जला रखा जाता है और व्रत को आकाश में तारों को देखने के बाद ही खोला जाता है।
वैदिक वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि यह व्रत देवी अहोई को समर्पित है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है और परिवार में सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है आज देश में यह पर्व मनाया जा रहा है साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है इस शुभ योग के कारण अहोई अष्टमी का महत्व और भी बढ़ गया है।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने अहोई अष्टमी व्रत एवं पूजा विधि के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि 17 अक्टूबर यानि आज प्रातः 9:29 बजे से शुरू होकर 18 अक्तूबर की सुबह 11:57 बजे तक अष्टमी तिथि रहेगी।पूजा का शुभ मुहूर्त आज सांय 5:57 बजे से रात्रि 7:12 बजे तक है वहीं तारा देखने का समय शाम 6:20 बजे जबकि चंद्रोदय रात्रि 11:35 बजे होगा। अहोई अष्टमी व्रत के लिए प्रातः जल्दी उठकर स्नान करके पुत्र की लंबी आयु की कामना करते हुए व्रत का संकल्प लें,पूजा के लिए गेरू से दीवार पर उनके चित्र के साथ ही साही और उसके सात पुत्रों की तस्वीर बनाएं। देवी को चावल, मूली, सिंघाड़ा अर्पित करें और अष्टोई अष्टमी व्रत की कथा सुनें तथा पूजा के समय एक लोटे में पानी भरें और उसके ऊपर करवे में पानी भरकर रखें। इसमें इस्तेमाल होने वाला करवा वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया है,शाम को तारे निकलने के बाद लोटे के जल से अर्घ्य देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
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