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हमरी एक पडो़सिन भौजी, तुनुक के बोलीं भैया से ।
कउनौ अइस जुगाड़ करौ, हुइ जाय तलाक मडै़या से ।
जिनका दीन्हेव वोट , मौज उइ रजधानी मां मारत हैं ।
छीले – छीले घास , हमार – तुम्हार जिंदगी गारत है ।
फाँसी पर झूलत किसान हैं , थोड़े – थोड़े कर्जा मां ,
संसद मां उइ बैठि – बैठि , सामूहिक पिण्डा पारत हैं ।
ऊब चुका है जी हमार अब , रोज की अम्मा- दैय्या से ।
कउनौ अइस जुगाड़ करौ , हुइ जाय तलाक मडै़या से ।
हर बार इलेक्शन आवैं पर , ई हमैं – तुम्हैं समझावत हैं ।
कुछ दिन और सबर राखौ , नीके दिन बहुरे आवत हैं ।
हर दफ्तर मां बिना घूस के , काम न कौनौ हुइ पावै ,
दुइ हजार लइकै प्रधान जी , शौचालय बनवावत हैं ।
इनके राज मां बनत हैं सारे , बिगड़े काम रुपैय्या से ।
कउनौ अइस जुगाड़ करौ , हुइ जाय तलाक मडै़या से ।
नये- नये आश्वासन बाँटत , नई – नई झूठी आशा ।
कब तक ई बेकूफ़ बनइहैं , हमैं – तुम्हैं दइकै झाँसा ।
खोपड़ी ऊपर नाच रही है , झूम के अपनी मस्ती मां ,
लोकतंत्र की पायल पहिने , राजनीति की रक्कासा ।
कब तक इनका जोश बढ़इहौ , अपनी ता ता थैया से ।
कउनौ अइस जुगाड़ करौ , हुइ जाय तलाक मडै़या से ।
कौनेव दल मां गाल बजैया , कौनेव मां गुंडा छट्टा ।
देखि – देखि घिनही करतूतैं , जी हमार हुइगा खट्टा ।
अब तौ कौनेव निर्दलीय , अच्छे मनई का वोट करौ ,
ई दल वाले सब लागत हैं , इक थैली के चट्टा – बट्टा ।
आखिर कब तक खाइके मट्ठा , घी चटवाई बिलैया से ।
कउनौ अइस जुगाड़ करौ , हुइ जाय तलाक मडै़या से ।
– विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी
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