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सिकंदराराऊ : पितरों की सेवा उपासना के परम पुनीत श्राद्धपक्ष के समाप्त होते ही देवी दुर्गा की पूजा एवं आशीर्वाद हेतु शारदीय नवरात्रि पर्व मनाया जाता है। साल में कुल चार बार मां भगवती की आराधना हेतु नवरात्रि पर्व आते हैं जिनमें शारदीय व चैत्र नवरात्रि को प्रत्यक्ष और आषाढ़ व माघ महीने में गुप्त नवरात्रि पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि अत्यंत विशिष्ट माने जाते हैं और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यधिक विशेष हैं।इस बार नवरात्रि पर्व के प्रथम दिन की शुरुआत सोमवार यानि कल से हो रही है। नवरात्रि के प्रारम्भ में ही शुभ ग्रहों के चतुर्ग्रही योग के कारण इस बार नवरात्री हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले व कष्टनिवारक सिद्ध होंगें।
शहर के प्रमुख ज्योतिष केंद्र वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख एवं ज्योतिर्विद स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने शारदीय नवरात्रि से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए बताया कि ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही अच्छे व बुरे समय का विश्लेषण किया जाता है। कुंडली के किसी एक घर में दो या दो से अधिक ग्रहों का होना एक अत्यंत विशिष्ट स्थिति को दर्शाता है, इस शारदीय नवरात्री दो या तीन नहीं बल्कि चार चार ग्रह एक साथ कन्या राशि में चतुर्ग्रही योग का निर्माण कर रहे हैं। नवरात्रि में देवी की सवारी को लेकर दिनों का अत्यंत महत्व है नवरात्रि का पहला दिन सोमवार होने के कारण मां दुर्गा गज की सवारी करते हुए पृथ्वी पर आएंगी। जो कि अत्यधिक वर्षा का सूचक है जिससे चारों ओर न केवल हरियाली होगी साथ ही फसलों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा और धन धान्य में वृद्धि होगी।
स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने नवरात्रि के पूजन एवं कलश स्थापना मुहूर्त के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि कल प्रातः 3:23 से प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ हो रही है जो कि 27 सितंबर दोपहर 3:08 पर समाप्त होगी अतः 26 सितंबर प्रातः 06:11 से 07:51 तक यानि 1 घंटा 40 मिनट तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा वहीं अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:48 से दोपहर 12:36 तक लगभग 48 मिनट की अवधि तक रहेगा।
सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त स्नान कर मां दुर्गा की प्रतिमा का विधि विधान से स्नान करवाकर पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए,और सुंदर वस्त्र पहनाकर चुनरी ओढ़ाकर उनको एक चौकी पर स्थापित करें तत्पश्चात कलश स्थापना के लिए मिट्टी के कलश में गंगाजल लेकर उस पर कलावा बांधें व रोली से स्वस्तिक बनाकर कलश में दूर्वा, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें। कलश पर अशोक या आम के पत्ते लगाकर नारियल को लाल कपड़े से बांधकर कलश पर रख दें। जहां कलश स्थापना करनी हो वहां बालू में जौ मिलाकर उसके ऊपर कलश स्थापना करनी चाहिए। उसके बाद  मां दुर्गा के दाहिने अखंड ज्योति स्थापित करनी चाहिए।
स्वामी जी के अनुसार अष्टमी नवमी तिथि की संधि पूजा का मुहूर्त दिन में 3:36 बजे से 4:24 बजे तक रहेगा, महानवमी तिथि का मान चार अक्टूबर मंगलवार को होगा। नवमी तिथि दिन में 1:32 बजे तक है इसके बाद दशमी तिथि का प्रवेश हो जाएगा। अत: विजयदशमी का पर्व भी चार अक्टूबर मंगलवार को ही मनाया जाएगा।

vinay

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