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सिकंदराराऊ : मंगलवार को नागपंचमी के अवसर पर मंदिरों में पूजा पाठ का आयोजन किया गया। ब्राह्मण पुरी स्थित श्री नर्मदेश्वर महादेव मंदिर पर कालसर्प दोष एवं रुद्राभिषेक महायज्ञ के अवसर पर भगवान आशुतोष का पूजन किया गया। साथ ही कालसर्प दोष शांति के लिए धातु के नागों का विशेष वस्तुओं से विशेष पूजन किया गया।
ज्योतिषाचार्य पंडित सुभाष चंद्र दीक्षित ने बताया कि कालसर्प दोष की शांति का सबसे उत्तम समय श्रावण मास की नागपंचमी है। नाग पंचमी को अनंत, वासुकी, पदम, महापदम, तक्षक, कुलीर, करकट, शंख नामक सर्पों का पूजन किया जाता है। नाग चित्र अथवा मिट्टी का सर्प बनाकर चावल, हल्दी, रोली एवं फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है। चीनी, कच्चा दूध, घी आदि चढ़ाकर आरती की जाती है एवं दूध दान किया जाता है। अर्जुन के पौत्र एवं राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पों को नष्ट करने के लिए नाग यज्ञ किया था। क्योंकि उसके पिता की मौत तक्षक नाग के डसने से ही हुई थी। आस्तिक मुनि ने उन्हें यज्ञ करने से रोका था। उस दिन सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी थी। तभी से नागपंचमी पर्व मनाने की परम्परा शुरू हुई।
कहा जाता है कि इस दिन सर्प पूजन करने से सर्पदंश का डर नहीं रहता। महिलाएं इस दिन सर्प को भाई मानकर पूजन करती है तथा अपने भाई और परिजनों की कुशलता की कामना को कच्चे दूध व घी का दान देती है। सर्पों से रक्षा के लिए घरों में अथवा घर के दरवाजे पर सर्प के चिन्ह भी बनाए जाते हैं।
इस अवसर पर किशन स्वरूप चतुर्वेदी, रमेश चतुर्वेदी, मुनेश चतुर्वेदी, आशा चतुर्वेदी, ऊषा चतुर्वेदी ,विनय चतुर्वेदी, विजयवर्ती पाठक, पंकज चतुर्वेदी, नरेश चतुर्वेदी, राजीव चतुर्वेदी, मित्रेश चतुर्वेदी, शिवहरी शर्मा , अनंत चतुर्वेदी , उत्कर्ष पाठक, हर्षित , सिद्धार्थ , युवराज ,आयुष, अर्जुन आदि मौजूद रहे।