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बुंदेलखंड : वॉटर क्राइसिस कि समस्या दिन प्रतिदिन बेहद गंभीर होती जा रही है । गर्मी शुरू होते ही यहां के बाशिंदों का सुबह से शाम तक अधिकांश समय पानी को लाने- लेजाने गुजर रहा है । ग्रामीण महिलाएं 1 से 2 किलोमीटर तक कठिन परिश्रम कर पानी लाने को मजबूर है । इनके पास सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ एक ही काम होता है। पानी सिर्फ पानी ।बुंदेलों की सुनो कहानी बुंदेलों की वाणी में, पानी दार यहां का पानी, आग यहां के पानी में ,जी हां बीते कई वर्षों से सूखे का दंश झेल रहे महोबा जिले के बाशिंदों यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है । यहां के बाशिंदों के सामने रोजगार की समस्या तो है। ही लेकिन पानी की समस्या के सामने सब बोने साबित हो रही है । इस क्षेत्र का अधिकांश भाग पठारी होने के कारण दिनों दिन वॉटर लेबिल नीचे खिसकता जा रहा है। क्योंकि बारिश न होने की बजह से ताल तलैया सूख चुके है । और यहां के बाशिंदों को रात रात जागकर पानी का इंतजाम करना पड़ता है । अधिकतर गांवों के हालत तो ऐसे है। की लोगो को गांव के बाहर से दो तीन किलोमीटर दूरी से पानी लाना पड़ता है ।, पानी के पीछे लड़ाइयां होना तो आम बात है। यहां के बाशिंदों को पानी के लिए जद्दोजहद करना आम बात बन गई है । जल ही जीवन है यह स्लोगन अधिकत्तर जगह जगह लिखा देखने को मिल जाता है। लेकिन पानी का महत्व क्या है । यह बुंदेलो से शायद अच्छा कोई नही समझ सकता । महोबा के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि पानी के लिए लोगो को 1 से 2 किलो मीटर तक जाना पड़ता है। और साइकिल में अपने डिब्बे टांग कर पानी भरते है। कभी कभार तो पानी के चक्कर मे मजदूरी तक छूट जाती है । यहां पर जिला प्रशासन द्वारा पानी के लिए किए गए इंतजाम बोने साबित हो रहे है ।