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सिकंदराराऊ : भगवान श्रीराम ने अपने उत्कृष्ट आचरण से संपूर्ण विश्व को मानवता, प्रेम तथा पारिवारिक एवं सामाजिक मर्यादा का संदेश दिया। सत्य से विचलित मानवता को युग-युगांतर तक सही मार्ग दिखाता रहेगा रामचरित मानस। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा स्थापित मर्यादाएं आज भी समाज में प्रासंगिक बनी हुई हैं। भगवान राम के आदर्श चरित्र का अनुसरण करने पर समाज में व्याप्त अनाचार ,दुराचार और पाप से मुक्ति मिल सकती है।
उक्त बातें गांव भैकुरी में चल रही श्रीराम कथा के दौरान राष्ट्रीय विप्र एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष मित्रेश चतुर्वेदी ने कहीं । उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। अनगिनत बार सनातन संस्कृति पर हमले हुए। लेकिन हर बार सनातन संस्कृति और अधिक उज्जवल एवं मजबूत होकर संरक्षित रही है । आज भी देश में ऐसी शक्तियां हैं ,जो सनातन संस्कृति को क्षति पहुंचाने की मंशा रखती है । समस्त सनातनी लोगों को अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
इससे पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मित्रेश चतुर्वेदी एवं राष्ट्रीय संगठन प्रभारी विजयवर्ती पाठक तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता विष्णुकांत दीक्षित ने व्यासपीठ की पूजा अर्चना की और आरती उतारी। आयोजक पंडित सत्य प्रकाश शर्मा द्वारा समस्त अतिथियों का फूल माला और पटका पहना कर स्वागत किया गया।
संगीतमय श्रीराम कथा के दौरान राम जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर मौजूद श्रद्धालु भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों के जन्म कथा का श्रवण कर झूम उठे। कथा व्यास गौरव कृष्ण पांडेय जी महाराज ने राम जन्म प्रसंग की ऐसी व्याख्या की कि श्रोता भावविभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि तीन कल्प में तीन विष्णु का अवतार हुआ है और चौथे कल्प में साक्षात भगवान श्रीराम माता कौशल्या के गर्भ से अवतरित हुए हैं। श्रीराम जन्म प्रसंग से पूर्व स्वामी ने सती प्रसंग की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने कहा कि एक बार माता सती भगवान शंकर बिन बताए ही माता सीता का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा लेने चली गई। लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें पहचान कर पूछ लिया हे माता आप अकेले कहां घूम रही है। जिसे सुन माता सती संकोच में पड़ गई। लेकिन भगवान शंकर ने ध्यान लगाकर सती द्वारा भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की बातें जान ली। जिसके बाद भगवान शंकर इस सोच में पड़ गए कि सती माता सीता का रूप धारण कर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने चली गई। स्वामी जी ने आगे कहा कि माता सती के पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा था। जिसमें शामिल होने के लिए माता सती ने भगवान से अपनी इच्छा जाहिर की थी। जिस भगवान शंकर ने माता सती से कहा कि तुम्हारे पिता ने यज्ञ में आने के लिए हम लोगों को आमंत्रित नहीं किया है। हालांकि माता-पिता, गुरु एवं मित्र के घर जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती है। जहां मान नहीं हो वहां बिन बुलाए जाना भी नहीं चाहिए। संगीतमय श्रीराम कथा सुनने के लिए हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो रही है। श्रीराम कथा के अमृत वर्षा में श्रद्धालु गोता लगा रहे हैं। श्रीराम कथा सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो जा रहे हैं।
इस अवसर पर आयोजक सत्य प्रकाश शर्मा, प्रमोद पालीवाल ,कृष्ण स्वरूप शर्मा ,पुष्पेंद्र शर्मा , खेवेंद्र सिंह जादौन, विनय शर्मा, चंद्रशेखर शर्मा, चंद्रपाल शर्मा, राकेश शर्मा ,अशोक शर्मा आदि मौजूद रहे।

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