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उत्तर प्रदेश मे इटावा जिले की चंबल सेंचुरी के खास प्रजाति के कछुओ की रिच प्रोटीन की खातिर चीन समेत साउथ एशिया के देशो बेहद मांग है । इसी मांग को पूरो करने के लिए तस्करी करके ले जाये जा रहे कछुओ को सैफई पुलिस ने छापेमारी करके तीन कछुआ तस्करो को गिरफतार करके उनके कब्जे से 745 दुर्लभ प्रजाति के कछुओ को बरामद किया गया है । इन कछुओ को चिप्स बनाने की खातिर बंगलादेश ले जाने की तैयारी थी ।
इटावा के अपर पुलिस अधीक्षक रामबदन सिंह ने आज यहॉ सैफई थाने मे एक पत्रकार वार्ता मे बताया कि वाहन चैकिंग के दौरान देर रात सैफई पुलिस ने दुमीला बार्डर से लोडर यूपी 84 सी 9628 को पकडा है जिसमे से 20 बोरो मे भरे हुए दुलर्भ प्रजाति के 745 कछुओ को बरामद किया गया है। इन कछुआ के साथ अशोक कंजड 45 पुत्र गयादीन निवासी गिहार थाना करहल,मैनपुरी,सतीश 21 पुत्र साहब सिंह जाटव निवासी रती का नगला करहल मैनपुरी और संजू पुत्र जालिम सिंह जाटव निवासी सिंहपुर थाना करहल मैनपुरी को गिरफतार कर लिया गया जब मास्टर मांइड राजकपूर पुत्र मुन्नीलाल निवासी गिहार कालौनी,भरथना,इटावा मौके का फायदा उठा कर फरार हो गया है ।
यहॉ पर बरामद हुए कछुओ की कीमत मात्र डेढ लाख रूपये ही है लेकिन यही जब कोलकाता और नेपाल मे पहुंच जाते है तो फिर 15 से लेकर 20 लाख तक पहुंच जाती है ।
उन्होने पकडे गये कछुओ तस्करो से हुई पूछताछ का हवाला देते हुए बताया कि बरामद कछुए चोरी छुपे यमुना चंबल आदि नदियो से पकड कर इक्कठा करके भर्थना मे राजकपूर के यहॉ पर जमा करते है और बडी गाडी मे लाद कर कोलकाता व नेपाल मे ले जा कर व्यापारियो को बेचकर अच्छे दाम हासिल करते है । पकडे गये कछुआ तस्कर अशोक कंजड के खिलाफ इससे पहले भी वन्य जीव अधिनियम के दो मामले साल 2016 और 2017 मे दर्ज हो चुके है ।
उन्होने बताया कि यहॉ से कछुओ की तस्करी करने वाले बंगलादेश के माध्यम से साउथ ईस्ट के देशो मे इन कछुओ को ले जाते है । पकडे गये संुदरी प्रजाति के कछुए मांसाहारी है । इनकी निचली सतह मे बहुत ही रिच प्रोटीन की मात्रा बहुत ही अधिक होती है । इनको बगंलादेश तक पहुंचाने के बाद साउथ ईस्ट देशो तक पहुंचाया उसके बाद इनकी स्किन को उबाल करके प्रोटीन बनाते है । फिर सूप के तौर पर इसको इस्तेमाल करते है । चीन आदि देशो मे इन्ही के माध्यम से प्रोटीन सूप का प्रयोग किया जाता है जिसका मूल्य प्रति किलोग्राम कई लाख मे होता है ।
कछुओ के पकडे जाने की खबर पर सैफई पहुंचे इटावा के जिला वन्य अधिकारी सत्यपाल सिंह बताते है कि इटावा मे चंबल आदि नदियो से कछुए की चिप्स निकालने का काम करने मे कछुआ तस्कर जुटे हुए है उनके गुप्तचरो के माध्यम से 20 के आसपास संभावित नाम भी सामने आ गये है । कछुए की चिप्स को निकालने वाले कछुए तस्करो को पकडने के लिए वन अमले की टीमो को सक्रिय कर दिया गया है । कछुआ तस्करो को पुलिस के माध्यम से पकडने की रणनीति बनाई है ।
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डा.राजीव चौहान का कहना है कि 1979 में सरकार ने कछुओं सहित दूसरे जलचरों को को बचाने के लिए चम्बल से लगे 425 किमी में फैले तटीय क्षेत्र को राष्ट्रीय चंबल सेंचूरी घोषित कर दिया था । कछुए की निचली सतह जिसे प्लैस्ट्रान कहते हैं,को काटकर अलग कर लेते हैं । उसे कई घंटे तक पानी में उबाला जाता है । उसके बाद इस परत को सुखाकर उसके चिप्स बनाए जाते है । एक किलो वजन के कछुए में 250 ग्राम तक चिप्स बन जाते हैं । निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका नामक कछुए की प्रजाति से प्लैस्ट्रान निकाली जाती है । इटावा की नदियो और तालाब मे 11 प्रजाति के कुछए पाये लेकिन चिप्स निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका से ही निकाली जाती है ।
उन्होने बताया कि वैसे सबसे पहले कछुओं की चिप्स बनाए जाने का मामला साल 2000 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में सामने आया था लेकिन तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि कछुआ की तस्करी के बजाय उनकी चिप्स भी बना कर के इस ढंग से बाजार में उतारी जा सकती है लेकिन अब जिंदा कछुआ के बजाय कछुओं की चिप्स का कारोबार बड़े पैमाने पर चल निकला है,जो हिंदुस्तान के रास्ते होते हुए थाईलैंड,मलेशिया और सिंगापुर आदि देशों तक जा पहुंचा है ।
उन्होने बताया कि साल 2000 के बाद कछुओ की 32 किलो चिप्स को पकडे जाने के मामला 2006 मे इटावा के ही जसंवतनगर मे सामने आया जहॉ पर एक बंगाली समेत 6 कछुआ तस्करो को गिरफतार किया गया । इनके पास बडे पैमाने पर कछुओ की चिप्स के अलावा जिंदा कछुए पकडे गये रहे ।
जहां चंबल इलाके में मात्र 5000 रूपये प्रति किलोग्राम से बिकने वाली कछुए के चिप्स हिंदुस्तान के बाहर पहुंचते ही 200000 रूपये मूल्य तक की हो जाती है इसी लालच के चलते कछुओं का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाना शिकारियों ने बेहतर और मुफीद मान लिया है
INPUT – रामकुमार राजपूत