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निपाह वायरस की चपेट में आने से केरल में लगभग 13 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 40 लोग इससे प्रभावित हैं। निपाह वायरस स्वाभाविक रूप से कश्ज़रुकी जानवरों से मनुष्यों तक फैलती है। यह रोग 2001 में और फिर 2007 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में भी सामने आया था। इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि केरल के बाहर के लोगों को केवल तभी सावधान रहना चाहिए जब वे प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा कर रहे हों या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ रहे हों। ऐसे में कुछ आसान उपाय अपनाकर निपाह वायरस से बचा जा सकता है।

निपाह संक्रमण के लिए कोई प्रभावी उपचार नहीं
हार्ट केयर फाउंडेशन (HCFI) के अध्यक्ष डॉ. के.के.अग्रवाल ने कहा, ‘क्लिनिकल तौर पर देखें तो निपाह वायरस के संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत इंसेफेलाइटिक सिंड्रोम से होती है जिसमें बुखार, सिरदर्द, म्यालगिया की अचानक शुरुआत, उल्टी, सूजन, विचलित होना और मानसिक भ्रम शामिल है। संक्रमित व्यक्ति 24 से 48 घंटों के भीतर कोमा में जा सकता है। निपाह इंसेफेलाइटिस की मृत्यु दर 9 से 75 प्रतिशत तक है। निपाह वायरस संक्रमण के लिए कोई प्रभावी उपचार नहीं है। उपचार का मुख्य आधार बुखार और तंत्रिका संबंधी लक्षणों के प्रबंधन पर केंद्रित है। संक्रमण नियंत्रण उपाय महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से यह ट्रांसमिशन से हो सकता है। गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को गहन देखभाल की आवश्यकता है।

बीमारी से बचने के लिए जरूरी सुझाव
सुनिश्चित करें कि आप जो खाना खाते हैं वह चमगादड़ या उनके मल से दूषित न हो।
चमगादड़ या किसी भी पक्षी या जानवर के कुतरे फलों को खाने से बचें।
ताड़ के पेड़ के पास खुले कंटेनर में बनी शराब पीने से बचें।
बीमारी से पीड़ित किसी भी व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं।
शौचालय के बाल्टी और मग को अच्छी तरह से साफ करें।
रोगी के लिए उपयोग किए जाने वाले कपड़े, बर्तन और सामान को अलग से साफ करें।

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