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सिकन्दराराऊ (हाथरस) : लॉकडाउन में कवि सम्मेलन का भी सिलसिला थम गया है लेकिन कवियों की कलम लगातार सृजन कर रही है। सिकन्दराराऊ के कवि अवशेष कुमार विमल के आवास पर गाँव बरामई निवासी उनका एक प्रशंसक विशाल यादव किसी कार्य से मिलने आया तो उनसे ग़ज़ल सुनने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने एक खाली डायरी लेकर विशाल से बोला कि चलो तुम्हें नई ग़ज़ल सुनाता हूँ, तुम जिस विषय पर कहोगे उसी पर शेर कहूँगा और साथ ही लिखूँगा। जब यह सिलसिला शुरू हुआ तो लगातार दोपहर 12 बजे से शाम तीन बजे तक चला। इस बीच ग़ज़ल के 201 शेर और 402 मिसरे हुए। प्रशंसक विशाल यादव ने मन भरकर शायरी का आनन्द लिया। ग़ज़ल के ज़्यादातर शेर समकालीन सन्दर्भ से जुड़े हुए थे, जिनमें कोरोना संकटकाल के परिवेश का चित्रण था-

क्यों दिल पर हाथ और चेहरा बुझा है।
बताओ तो बताओ क्या हुआ है।।

तुम्हें भी हो गया है क्या कोरोना,
या कोई चेहरा में दिल में बसा है।।

पड़ी जब जान की तो भाग आये,
जो कहते गाँव में रक्खा ही क्या है।।

अभी तो लॉक डाउन चल रहा है,
खत्म सब दोस्ती का सिलसिला है।।

न जाना भूलके भी घर से बाहर,
पुलिस के हाथ में डण्डा लगा है।

कुछ शेरों में मजदूरों की दीनदशा का भी चित्रण किया गया-

फफोले पड़ गए हैं रास्ते में,
ये मज़मा घर को पैदल ही चला है।।

हमें पूछो हमारा दर्द दिल का,
हमारा खून पटरी पर बहा है।।

लिए जो गर्भ पैदल जा रही है,
बेचारी वो भी कोई देवी माँ है।।

कुछ शेर इश्क मुहब्बत और हँसी-मजाक और अन्य प्रकार की भावभूमि से भी जुड़े हुए थे-

कभी इस पर कभी उस फिदा दिल,
तुम्हारा इश्क है या रायता है।।

न जाने कौन किसको मार दे अब,
आज तो मुल्क से महजब बड़ा है।।

दोस्ती हो गयी है इतनी गहरी,
तेरी माँ मेरी, मेरी तेरी माँ है।।

वही है सुखनबर सच्चा कि जिसने
ग़ज़ल का आखिरी मिसरा कहा है।।

इनपुट : अनूप शर्मा

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