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भगवानपुर ( बेगूसराय ) एक ही अभिमान रखना हम ठाकुरजी के हैं, ठाकुरजी हमारे हैं, दूसरा अभिमान मत करना, अहंकारी का महाविनाश निश्चित है । यह उदगार प्रखण्ड क्षेत्र के बनवारीपूर चकदूल्लम स्थित शान्ति गुरुकुल राघवेंद्र आश्रम मे चल रहे अखंड सीताराम संकीर्तन नवाह यज्ञ सह नौ दिवसीय संगीत मय श्रीमद्भागवत गीता ज्ञान यज्ञ कथा के चतुर्थ दिवस के प्रथम सत्र मे बुन्देलखण्ड जालोन से पधारे कथावाचक डा मोहन किन्कर जी महाराज वेदान्ताचार्य ने व्यास मंच से व्यक्त किया । उन्होंने उपस्थित श्रोताओ को संबोधित करते हुए कहा कि हवा , पानी, अग्नि को भी अहंकार हो गया था, अग्नि ने कहा कि मै दूनिया को जला सकता हूँ, पानी ने कहा कि मै दूनिया को डूबा सकता हूँ, फिर हवा ने भी अहंकार की अंगराई ली और कहा कि मै दूनिया को उड़ा कर क्षण पलक मे तहस नहस कर सकता हूँ । ठाकुरजी, बांकेबिहारी ने तीनो अभिमानी देवताओ का अभिमान चूर करने के लिए भिखारी का रूप बनाकर आये तथा हवा , पानी, अग्नि का अहंकार उनके जुबान से सुनकर घास का सूखा तिनका को उड़ा दिया , फिर अग्नि को उसे जलाने को कहा लेकिन अग्नि उसे जला न सका, पानी उसे गला न सका, हवा उसे उड़ा न सका । तीनो का मान मर्दन कर श्री हरि अदृश्य हो गये. फिर तीनो कैलाश पर्वत पर जाकर तीन साल तक घोर तपस्या की । कठिन तपस्या के बाद माता भगवतीजी प्रकट हुई तथा तीनो देवताओ से कठिन तप का कारण पूछा, तीनो देवताओ ने कहा माते मैं अपने मान मर्दन करने वाले का दर्शन करना चाहता हूँ तब देवी भगवती ने कहा कि हे देवताओ आपका मान मर्दन करने वाला कोई और नही स्वयं ठाकुरजी महाराज हैं, तुम्हारे भीतर जो शक्ति है, ठाकुरजी की कृपा से है, इसलिए अभिमान मत करना । आगे महाराज श्री ने मन और शरीर का भेद सुन्दर शब्दो मे करते हुए कहा कि मन चंचल है, अस्थिर है जिस तरह बिना लगाम घोड़ा बिगड़ जाता है, उसी तरह मन पर भी लगाम नही लगे, तो मन भी बिगाड़ जायेगा । मन को संसार मे मत लगाओ, संसार के सारे नाते, रिस्ते क्षणिक है बीच मे मिले, बीच मे ही छुट जाते हैं । सच्चा रास्ता भगवान् से है, इसलिए मन को भगवान् मे लगाओ । संसारिक रिस्ते कष्ट, विशाद और आंसूओ को देने वाला है, लेकिन भगवान् श्रीकृष्ण से रिश्ता कष्टो का निवारण करता है, जीवन मंगलमय कल्याण कारी होता है ।
धीरे-धीरे श्रोताओ की भीड़ कथा पंडाल को तंग करता जा रहा है । महाराज श्री बढते भीड़ को देख गद गद हो रहे हैं
INPUT – विजय भारती
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