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हसायन में उनके छाया चित्र पर पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना के साथ मनायी तथा उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला
महर्षि वाल्मीकि कश्यप ऋषि के नौवीं संतान थे। वह ब्राह्मण जाति से थे। इनका पूर्व नाम अग्नि शर्मा था। लालन पालन जंगल में होने से इनका नाम रत्नाकर भी हुआ। इन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की और उनके शरीर पर दीमक का आवरण आ गया। बामी से इनका प्रादुर्भाव होने पर इनका नाम वाल्मिक भी पड़ा जो आज कल प्रचलित है। इनके गुरु देवर्षि नारद थे इन्होंने संस्कृत में बाल्मिक रामायण महाकाव्य को लिखा इनके लव और कुश शिष्य थे। यह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे हमें उनकी महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि रचित बाल्मिकी रामायण का अध्ययन कर शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए तथा उनके उसका अनुसरण करना चाहिए कार्यक्रम में मुख्य रूप से आर पी शर्मा, विपिन कुमार शर्मा, सुरेंद्र कुमार शर्मा, प्रेम कुमार शर्मा, राजकुमार सिंह, सत्यपाल सिंह, सुरेश कुशवाहा, शैलेंद्र सिंह, शैलेंद्र कुमार, मानवेंद्र, आशीष कुमार आदि उपस्थित रहे।
INPUT – YATENDRA PRATAP
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