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सिकन्दराराऊ : आंवला नवमी पर महिलाओं ने आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -समृद्धि कामना की तथा तप, जप, दान इत्यादि कर पापों से मुक्त कर मनोकामनाओं की। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है । इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है।
ज्योतिषाचार्य प. शीलेन्द्र कृष्ण दीक्षित ने कहा कि सूर्योदय से पूर्व स्नान करके आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले की जड़ में दूध चढ़ाकर रोली, अक्षत , पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती।
पौराणिक कथा के अनुसार आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा शुरू करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं । कथा प्रसंग के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एकसाथ करने की उनकी इच्छा हुई । लक्ष्मी माँ ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है । तुलसी श्री हरि विष्णु को अत्यंत प्रिय है और बेल भगवान भोलेनाथ को अतः आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर माँ लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा संपन्न की । माँ लक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर श्री विष्णु और शिव प्रकट हुए । लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया । इसके बाद स्वयं ने भोजन किया । उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी का दिन था । तभी से आंबला वृक्ष पूजन की यह परम्परा चली आ रही है । अक्षय नवमी के दिन यदि आंवले की पूजा करना और इसके नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला ज़रूर खाएं ।

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