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सिकन्दराराऊ : कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर गोपाष्टमी का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया। श्रद्धालु महिलाओं ने गौ माता की पूजा कर घर में सुख समृद्धि की कामना की। इस मौके पर गोमाता को चुनरी, साड़ी उड़ाकर तथा हरा चारा और सब्जियां खिला कर सुखसमृद्धि की कामना की।
चामुंडा माता मंदिर के पुजारी पंडित रामचंद्र बाजपेई ने गोपाष्टमी का महत्व बताते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गाय को अपना शरीर बताया है। गोपाष्टमी के दिन समुद्र मंथन से गौ माता कामधेनु के रूप में प्रकट हुई। उन्हीं की समस्त गोमाता संतति हैं। प्राचीन काल में हमारे प्रमुख सप्तऋषियों ने गाय का पालन किया था। गाय सर्वदेव मय है। गौ माता के दर्शन तथा पंचगव्य दूध, दही, गोबर, गोमूत्र का सेवन करने से अनेक रोग नष्ट होते हैं, तथा जन्म जन्मांतर के पाप भी नष्ट होते हैं।
जिले में गोपाष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने गौ माता की परिक्रमा कर पूजा की, और अपने परिवार के सुख और समृद्धि की कामना की। महिलाओं ने गौ माता को हार पहनाकर चारा खिलाया, और परिक्रमा कर पूजा की। शास्त्रों के अनुसार दीवाली के ठीक बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन ही मां यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को गाय चराने के लिए जंगल भेजा था। इस दिन गौ, ग्वाल और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का महत्व है। हिंदू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है। कामधेनु के रूप में गाय माता सभी की मनोकामना पूर्ण करती हैं। मृत्यु के पश्चात जीव गाय माता की पूंछ पकड़ कर ही वैतरणी नदी को पार करता है। उन्होंने कहा कि गोपाष्टमी पर गौ माता की विशेष पूजा की जाती है।विशेषतौर पर बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप-दीप, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र, जल, आदि से गाय का पूजन और आरती उतारी जाती है। इस दिन गायों को नहला धुला कर खूब सजाया-संवारा जाता है। इसके बाद गाय को चारा, आदि डालकर उनकी परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं। ऐसी आस्था भी है कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा पुण्य मिलता है। परिवार की सुख समृद्धि में विशेष वृद्धि होती है |

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