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सिकंदराराऊ : क्षेत्र के गांव महामई में चल रही श्री राम कथा के पंचम दिवस की कथा में प्रवचन करते हुए कथा व्यास ओ पी शर्मा ने कहा कि यदि ईश्वर ने आपको धन संपदा दी है तो उसका उपयोग धर्म के कार्य में करना चाहिए। सदकार्य में धन का सदुपयोग करने से धन और धर्म दोनों बढ़ते है। धन लक्ष्‌मीजी के ज्येष्ठ पुत्र है। जो इसका उपयोग बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय के लिए करते हैं, उन पर लक्ष्‌मीजी प्रसन्न होती हैं। अन्यथा लक्ष्‌मीजी के तीन अन्य पुत्र अग्नि, राजा और चोर जबरदस्ती आपका धन ले जाते हैं। अर्थ का परमार्थ में उपयोग मुक्तहस्त से करें। धर्म में किया गया खर्च धन भगवान ब्याज समेत वापस लौटा देते हैं, यह सिद्धांत हमेशा याद रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राम जन्म प्रसंग की ऐसी व्याख्या की कि श्रोता भावविभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि तीन कल्प में तीन विष्णु का अवतार हुआ है और चौथे कल्प में साक्षात भगवान श्रीराम माता कौशल्या के गर्भ से अवतरित हुए हैं। श्रीराम जन्म प्रसंग से पूर्व स्वामी ने सती प्रसंग की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने कहा कि एक बार माता सती भगवान शंकर बिन बताए ही माता सीता का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा लेने चली गई। लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें पहचान कर पूछ लिया हे माता आप अकेले कहां घूम रही है। जिसे सुन माता सती संकोच में पड़ गई। लेकिन भगवान शंकर ने ध्यान लगाकर सती द्वारा भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की बातें जान ली। जिसके बाद भगवान शंकर इस सोच में पड़ गए कि सती माता सीता का रूप धारण कर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने चली गई। स्वामी जी ने आगे कहा कि माता सती के पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा था। जिसमें शामिल होने के लिए माता सती ने भगवान से अपनी इच्छा जाहिर की थी। जिस भगवान शंकर ने माता सती से कहा कि तुम्हारे पिता ने यज्ञ में आने के लिए हम लोगों को आमंत्रित नहीं किया है। हालांकि माता-पिता, गुरु एवं मित्र के घर जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती है। जहां मान नहीं हो वहां बिन बुलाए जाना भी नहीं चाहिए। संगीतमय श्रीराम कथा सुनने के लिए हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो रही है। श्रीराम कथा के अमृत वर्षा में श्रद्धालु गोता लगा रहे हैं। श्रीराम कथा सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो जा रहे हैं।
यजमान की भूमिका उमेश शर्मा ने सपत्नीक निभाई।

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