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सासनी में सोमवार को वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के छवि चित्र पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने फूल माला एवं पुष्प अर्पित किये। बी ओ = वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही समस्त भारतवर्ष के वासियों को इस बात का गर्व होता है कि उनका जन्म उस धरा पर हुआ है जहां पर प्रताप जैसे वीर योद्धा हुए थे, जिन्होंने कभी भी मुगलों की हार स्वीकार नहीं की।

महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। मेवाड़ की शौर्य-भूमि धन्य है जहां वीरता और दृढ प्रण वाले प्रताप का जन्म हुआ। जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया। उनके 24 भाई व 20 बहनें थी। वे एक तरह से 20 मांओं के प्रतापी पुत्र थे। महाराणा प्रताप का कद 7 फुट 5 इंच का था। प्रताप के भाले का वजन 80 किलो, उनकी दो तलवारें जिनका वजन 208 किलोग्राम और कवच लगभग 72 किलोग्राम का था। कहा जाता है कि उनकी तलवार के एक ही वार से घोड़े के दो टुकड़े हो जाया करते थे। वे करीब 3 क्विंटल बोझ के साथ युद्ध में जाया करते थे और युद्ध के मैदान में अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ा देते थे।

सन् 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के अस्सी हजार की सेना का सामना किया। महाराणा प्रताप के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम ‘चेतक’ था। इस युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए।

मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने भी सभी प्रयास किए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया।

मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले ऐसे वीर सम्राट, शूरवीर, राष्ट्रगौरव, पराक्रमी, साहसी, राष्ट्रभक्त को शत्-शत् नमन।

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