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हाथरस : दुनिया भर में, कोविड-19 महामारी और उसके परिणामस्वरूप लॉकडाउन स्कूल बंद होने से बच्चों को भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक क्षति हुई है। कई बच्चे महामारी के मूक शिकार हैं, और कोविड-19 से उनके कोमल दिमाग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। बच्चे एक-दूसरे से उतना ही सीखते और बढ़ते हैं जितना कि अपने माता-पिता और स्कूलों से, लेकिन पिछले दो वर्षों से वे अलग-थलग पड़ गए थे, घर पर बंद थे, अपने दोस्तों के साथ बातचीत करने में असमर्थ थे। उन्हें ऑनलाइन शिक्षण, मनोरंजन और यहां तक कि सामाजिक मेलजोल के लिए मोबाइल/लैपटॉप स्क्रीन पर देखना पड़ रहा था। परिवारों को वित्तीय संकटों का सामना करते हुए, नौकरी गंवाते हुए, बड़े चिकित्सा खर्चों का सामना करते हुए भी देखा गया है, सभी को कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ा है। युवा पीढ़ी इससे सबसे अधिक प्रभावित हुई। कोविड-19 के कारण विद्यार्थियों का न तो कोई स्कूल, न ही कोई दोस्त और न ही कोई षारीरिक क्रियाकलाप बढ़ा। आरएलवीएम में, हम दृढ़ता से मानते हैं कि बच्चों को स्कूल आने की आवश्यकता है। टीकाकरण में वृद्धि और दिन-प्रतिदिन कोविड के जोखिम को कम करने के साथ-साथ हम प्रार्थना करते हैं कि 2022-23 सत्र के लिए स्कूली शिक्षा अंततः सामान्य हो जाए। लेकिन सिर्फ कक्षा में वापस आना ही काफी नहीं होगा। छात्रों को फिर से सीखना होगा कि एक-दूसरे के साथ कैसे जुड़ना है।
राजेन्द्र लोहिया विद्या मन्दिर के प्रबंधक कपिल लोहिया बताया कि “खेल, संगीत और कला (अध्ययन के साथ) बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की कुंजी होती है। खेलना, बातचीत करना, प्रतिस्पर्धा करना, विचारों को व्यक्त करना ऐसी गतिविधियाँ हैं जो शरीर और दिमाग को सक्रिय बनाती है। आरएलवीएम में हम अपने छात्रों का समग्र विकास करने हेतु तैयार है |

INPUT-BRAJMOHAN THENUA

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