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जहां कोई नहीं पहुंचा, वहां अभियान पहुंचेगा.
हिमालय से बहुत ऊपर, सजल का यान पहुंचेगा.
करो उनकी सदा सेवा, मिला जीवन तुम्हें जिनसे,
मिलेंगे आयु- धन -यश- बल गगन तक गान पहुंचेगा.
भले कितनी मुसीबत हो, इरादे हो मगर ऊंचे,
प्रगति की दौड़ में आगे, तभी इंसान पहुंचेगा.
जुटे हैं देश ,दुनिया के ,प्रतिस्पर्धा लगी देखो,
भरोसा है बहुत आगे ये हिंदुस्तान पहुंचेगा.
मरुस्थल ही मरुस्थल है, चतुरदिक पर नहीं चिंता,
परिश्रम से यहां भी एक, नखलिस्तान पहुंचेगा.
हमारे ज्ञान की , विज्ञान की, जै जै सदा से है,
धरा से शीघ्र मंगल तक ,सफल विज्ञान पहुंचेगा.
सजलकार -उपेंद्र त्रिपाठी “गरलकंठ”