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विकासखंड सहपऊ क्षेत्र के गांव खोड़ा मैं हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है यह शिक्षक दिवस खोड़ा बहजोई इंटर कॉलेज से रिटायर्ड श्रीमती कमलेश देवी पति पूर्व प्रधान हेमवीर सिंह ग्राम पंचायत के द्वारा प्राथमिक विद्यालय खोड़ा के सभी प्राइवेट एवं सरकारी विद्यालय के टीचरों को बुलाकर सम्मानित किया जाता है टीचर्स डे की कमान अंकित चौधरी संभालते हैं हर टीचर एवं सभी ग्राम वासियों वृद्धजनों का स्वागत करते हैं अंकित चौधरी से वार्ता करने पर उन्होंने कहा कि हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु कृतज्ञता का ऋण सबसे बड़ा होता है. सदा अपने गुरु के प्रति प्रार्थना का भाव रखिये तथा मन में उनके प्रति सच्ची श्रद्धा रखिये और अपने मुखारविंद से गुरुओं के सम्मान के लिए एक कविता भी प्रस्तुत की,
शिक्षा रूपी दीप शिखा का
हो प्रकाश घर आंगन में
मानवता के पुष्प मनोहर
खिले रहें मेरे मन में
सदविचार की शक्ति भरी हो
वाणी को ऐसा स्वर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो”
“बिन गुरु यह जीवन है ऐसा
जैसे सृष्टि अधूरी है
जिस ने गुरु को पाया उस की
सारी इच्छा पूरी है
द्वार तुम्हारे खड़ा हुआ हूं
ज्ञानोदय वाला वर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो”
इस शिक्षक दिवस के मौके पर बहजोई रिटायर प्रिंसिपल श्रीमती कमलेश देवी ने बहुत ही अच्छे गुरु एवं शिष्य के बारे में सभी ग्रामवासी क्यों को बताया गुरु और शिष्य का संबंध क्या होता है
गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है। गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, जैसे- अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु आदि। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’। ‘सिख’ शब्द संस्कृत के ‘शिष्य’ से व्युत्पन्न है
‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है, वह गुरु है। आश्रमों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता रहा है। भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यधिक सम्मानित स्थान प्राप्त है। भारतीय इतिहास में गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रूप में होने के साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है.
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”
प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव. शिक्षक में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता. अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है अध्यापक वीरेंद्र जायसवाल जी ने
एक आदर्श विद्यार्थी के गुण एस प्रकार बताये हैं-
“काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ”।।
गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था। उसका उद्द्येश्य रहता था कि गुरु उसका कभी अहित सोच भी नहीं सकते. यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।
शिक्षक दिवस के मौके पर रितु पचौरी, सुनीता देवी, रश्मि चौधरी, मिथलेश देवी चित्रगुप्त वर्मा , उमेश चंद दीपक चौधरी,हरवीर सिंह, आंगनवाड़ी कुसुमलता ,पुष्पा देवी ,विनीता देवी ,सुमन देवी ,सुषमा देवी, प्रवीन कुमार ,हैवेश कुमार ,अमन चौधरी ,आदि अन्य ग्रामीण मौके पर मौजूद रहे |
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