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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की वसीयत में जायदाद का एक तिहाई हिस्सा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम है। जिन्ना ने अपनी वसीयत सन 1939 में लिखी थी। इसमें मुंबई के जिन्ना हाउस समेत अन्य जायदाद का उल्लेख किया गया है। एएमयू इंतजामियां का दावा है वसीयत के अनुसार, जायजाद लेने के लिए कभी दावा नहीं किया और न ही करेंगे। जिन्ना से विश्वविद्यालय का कोई मतलब नहीं है।

एएमयू इंतजामियां के अनुसार मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी वसीयत में जायदाद को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, सिंग मदरसा कराची और मदरसा इस्लामियां पंजाब को बराबर हिस्सा दिया। इंतजामियां का दावा है कि वसीयत का एक तिहाई भाग एएमयू के नाम हैं लेकिन संपत्ति लेने के लिए कभी दावा नहीं किया और न ही भविष्य में किया जाएगा। जिन्ना से विश्वविद्यालय का कोई मतलब नहीं है। हालांकि कैंपस के यूनियन हॉल में लगी जिन्ना की तस्वीर सिर्फ इतिहास का हिस्सा है। तस्वीर को सिर्फ मुद्दा बनाया जा रहा है, जो गलत है।

जिन्ना हाउस से ही बनी थी बंटवारे की योजना 

मुंबई का जिन्ना हाउस मोहम्मद अली जिन्ना ने इंग्लेंड से लौटने के बाद 1936 में बनवाया था। लगभग उसी समय मुस्लिम लीग का पूरा नियंत्रण जिन्ना के हाथों में आ गया था। जिन्ना ने इसी हाउस से ही भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की योजना बनायी गई थी। जिन्ना इस घर में मुल्क के बंटवारे तक रहे। इसके बाद वे कराची चले गए।

मुशर्रफ ने जताऊ थी वाणिज्य दूतावास में बदलने की इच्छा 

जिन्ना हाउस को वर्ष 2007 में वाणिज्य दूतावास में बदलने की मांग भी की जा चुकी है। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने बंगले को पाकिस्तान की संपत्ति के तौर पर वाणिज्य दूतावास में बदलने की इच्छा जताई थी। उसी साल जिन्ना की बेटी वाडिया ने एक याचिका दायर कर जिन्ना की एकमात्र वारिस का हवाला देते हुए बंगले पर अधिकार जताया था।

इस मामले में एएमयू के पीआरओ सेल मेंबर इंचार्ज प्रो. शाफे किदवई का कहना है कि पाकिस्तान के जनक मोहम्म्मद अली जिन्ना अपनी वसीयत में अपनी जायदाद का एक तिहाई हिस्सा एएमयू के नाम कर गए थे। यह वसीयत 1939 में लिखी गई थी, लेकिन विश्वविद्यालय ने जिन्ना की विरासत को कभी क्लेम नहीं किया और न ही करेगा।

Input shivam