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कानपुर। अंग्रेज तो चले गए, पर उनके बनाए कानून और सरकारी बाबुओं की ठाठ को आजादी के 70 बीत जाने के बाद भी कोई सरकार दुरूस्त नहीं कर पाई। जनता ने सरकारें बदलीं पर शासक ने व्यूरोकेट्स को नहीं सुधार सके। जिसकी बागनी कानपुर के सबसे बड़े अस्पताल उर्सला में देखने को मिली, जहां पूरी मानवता शर्मसार हो गई। यह तस्वीर बेहद दर्दनाक है, और सिस्टम को लेकर सैकड़ों सवाल खड़े करती है। इस तस्वीर में एक पति अपनी पत्नी के शव को ठेले पर ढोता हुआ दिख रहा है। शव को उर्सला से लेकर 4 किमी की दूरी पर स्थित स्वरूप नगर स्थित पोस्टमार्टम हाउस पहुंचाता है। जब उससे पूछने की कोशिश की गई तो बोला भईया डॉक्टरों ने ठीक से इलाज नहीं किया, जिसके चलते उसकी मौत हो गई। सरकारी एम्बूलेंस मांगी तो डॉक्टरों ने देने से इंकार कर दिया। प्राईवेट वाहन करने के लिए पैसे नहीं थे, तो ठेले पर शव रख घर की ओर निकल पड़ा हूं।

फिर थामा ठेले का हैंडिल

योगी सरकार बेपटरी व्यवस्था के ठीक होने के चाहे जितने दावे करती हो पर वह झूठ साबित हो रहे हैं। उर्सला में इलाज के दौरान घाटमपुर निवासी श्याम यादव की पत्नी की बुधवार की सुबह भोजन पकाते हुए जल गई थी। जिसे इलाज के लिए पहले सीएचसी लाया गया, हालत गंभीर होने पर डॉक्टरों ने उसे उर्सला के लिए रेफर कर दिया। श्याम यादव ने बताया कि डॉक्टरों ने पहले ठीक से इलाज नहीं किया, जिससे उसकी पत्नी की गुरूवार को मौत हो गई। डॉक्टरों ने शव को मर्चुरी में रखवा दिया। मैंने एम्बूलेंस की मांग की तो कर्मचारियों ने पैसे की डिमांड कर दी। पैसे नहीं होने के चलते मैंने एक से किराए में ठेला लिया और पत्नी के शव को रख पोस्टमार्टम हाउस पहुंचाया।

नहीं पिघला उर्सला अस्पताल 

मृतका के पति श्याम यादव ने बताया कि शव को पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन ने कोई इंतजाम नहीं किया। एमरजेंसी परिसर में मौजूद सरकारी एम्बूलेंस के कर्मचारी से शव ले जाने को कहा तो उसने सात सौ रूपए की मांग कर दी, पर जेब में इतने पैसे नहीं थे कि मैं उसे दे सकता। फिर मैंने अपनी पत्नी को शव को अकेले उठाया और ठेले पर रखा। पूरा तमाशा वहां खड़े डॉक्टर व कर्मचारी देख कर हंस रहे थे। कुछ दूर पर मैंने ठेला चलाया तो गर्मी के चलते जमीन पर गिर गया। साथ चल रहे ठेले वाले ने मेरी गरीबी को समझा और फिर उसने ठेले का हैंडिल थाम लिया और पत्नी के शव को पोस्टमार्टम तक पहुंचाया।

न बदला है और न बदलेगा

देश में आएदिन ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं। मामला बड़ने पर छोटी-मोटी कार्रवाई सरकारी बाबुओ पर कर केस रफा-दफा कर दिया जाता है। समाजसेवी सौरभ श्रीवास्तव कहते हैं कि जनता चाहे जितनी सरकरें बदल दें, पर देश व प्रदेश का भला नहीं होने वाला। चार साल पहले कानपुर के साथ देशभर की जनता को उम्मीद थी की नरेंद्र मोदी परिर्वतन करेंगे। अंग्रेजों के बनाए कानूनों से देश की जनता को मुक्ति दिलाएंगे। बेपटरी स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, मकान और पेयजल की बेतहर व्यवस्था कर इतिहास रचेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। चार साल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानपुर के लिए कुछ भी नहीं किया। स्वास्थ्य सेवाएं वेंटीलेटर पर हैं तो शिक्षा में माफियाओं का राज है। गंगा दर्द से करार रही है तो सरकारी अस्पतलों में गरीबों का इलाज नहीं हो रहा। जबकि प्राईवेट सेक्टर कारोबारी-उद्योगपतियों की आय चार साल में चार सौ गुना बढ़ गई है।

एक साल यूपी बेहाल

एक साल पहले योगी आदित्यनाथ ने सीएम पद की शपथ ली और प्रदेश को उत्तम प्रदेश करने का वादा किया। महिलाओं की सुरक्षा के लिए एंटी रोमियो सेल बनाया तो सरकारी अस्पतलों में डॉक्टरों को 24 घंटे रहने का आदेश दिया। प्राईवेट स्कूलों में मनमानी फीस पर अंकुश लगाने की कई लोकलुभावनी घोषाणाएं की पर वह 365 दिन गुजर जाने के बाद एक भी जमीन पर दिखाई नहीं देती। हां एम्बूलेंस नहीं मिलने के चलते लाचार पिता ठेले में बेटे के शव को ले जाता हुआ दिखता है तो जहरीली शराब पीने के बाद अपनी मां की गोद में बेटा आखरी ंसांसें लेता है। सौरभ कहते हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ कुछ भी कर लें, लेकिन प्रदेश की जनता का भला नहीं हो कसता। हां अगर उनके अंदर सच में कुछ करने की इच्छाशक्ति है तो जिम्मेदार अलाधिकारियों पर सीधे कार्रवाई करें, तभी कुछ हद तक भला हो सकता है।

कुछ इस तरह से बोले जिम्मेदार

सीएमओ डॉक्टर अशोक शुक्ला ने बताया कि उर्सला में निर्देश स्तर के अधिकारी बैठते हैं। फिर भी खुले में शव भेजा गया जो गंभीर लापरवाही है। पूरे प्रकरण की जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उर्सला अस्पताल के एमएस डॉक्टर एमएल विश्वकर्मा ने बताया कि दो शव वाहन हैं। चालक न होने की जानकारी प्रमुख सचिव को वीडियो कॉन्फेंसिंग के जरिए दी जा चुकी है। सितंबर 2017 से चालक का भुगतान भी बंद है। जिससे सुविधा देने में समस्या हो रही है। 

इनपुट: उपेंद्र अवस्थी

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