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सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के असूलों से कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से…. कि मैं इन्तजार करूँ, ये दिल निसार करूँ, मैं तुझसे प्यार करूँ हो मगर कैसे ऐतबार करूं। झूठा है तेरा वादा। वादा तेरा वादा वादे पे तेरे मारा गया…. बन्दा मैं सीधा साधा… जी हाँ 1970 में बानी फिल्म दुश्मन में किशोर कुमार जी का ये गीत सीधे साधे बन्दों की ज़िंदगी में होने वाली तकलीफों और नेताओं के झूठे वादों की पोल खोलता सा नज़र आता है।  जिसमें चुनाव आते ही नेताओं की भारी भरकम शब्दों की भाषण बाजी तो होती ही है साथ में होते हैं सबको लुभाने के लिए भारी भरकम झूठे वादे… जो चुनाव के ठीक बाद ऐसे हवा में फुर्र हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग गायब हो जाता है।  यहां सवाल एक पार्टी या एक नेता का नहीं अपितु एक आद को छोड़ कर सभी नेताओं का यही हाल है। बिजली पानी का मुद्दा चुनाव आते आते जहां तूल पकड़ लेती है, वहीँ धर्म-जाति -मज़हब को भी अब इसमें इस्तेमाल कर लिया गया है और अब तोएक लेटेस्ट फंडा चल रहा है…. हमारे फौजी भाईयों का…. जहां देखा पुराने सारे फंडे जब जनता जान चुकी है तो अब कुछ नया फंडा अपनाना चाहिए। आप जान तो गए ही होंगे कि मैं यहां कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना वाला खेल खेल रहा हूँ…. भ्रष्टाचार वाला मुद्दा तो अभी कहीं नज़र नहीं आ रहा है लेकिन उम्मीद पूरी है जल्द ही यह मुद्दा भी नज़र आ जाएगा। ये तो बन्दा सीधा साधा ही चुनाव आते आते बिजली पानी की मार झेलने को मजबूर हो जाता है। अब कानपुर शहर को ही ले लो चुनाव की घोषणा क्या हुई बत्ती ने भी अपने जलवे दिखाने शुरू कर दिए। अभी तो पहले से कम ही जा रही है।  लेकिन यह बात भी सत्य है कि अभी तो ये अंगड़ाई है आगे बहुत लड़ाई है… बाकि तो आप समझ ही गए होंगे कि ये इशारा आखिर आप को बताना क्या चाहता है।  सिर पर चुनावी टेंशन हो, गर्मी का माहौल हो और उस समय बत्ती गुल हो जाए तो कितनी टेंशन होती है, यह हमारे माननीय नेताओं को शायद पता ही नहीं हैं।  अलबत्ता वो या उनके होनहार कार्यकर्ता जले पर नमक माईक से वोटों की मांग करते हुए छिड़क जाते हैं। अब ऐसे में लगता है कि सब कुछ छोड़छाड़ कर बस अभी वोट डालने चले जाएँ।  ताकि यह स्याप्पा खत्म हो और हमको गर्मी में काम से काम बिजली से सुख की अनुभूति मिल जाए। फिर आती है समस्या पानी की।  तो इसमें कह सकते हैं कि  कानपुर वालों का लक  इतना अच्छा है की एक आद जगह को छोड़ कर शायद पानी की समस्या जल्दी होती ही नहीं हैं।  फिर चलते हैं धर्म -जाति -सम्प्रदाय पर तो भैया मोरे इसमें तो मैं कुछ नहीं बोलूंगा … बस इतना ही कहूंगा कि  धर्म जाति के ठेकेदारों कभी इंसानियत का पाठ भी पढ़ा दिया होता तो आज ये नौबत न आती। आज साड़ी दुनिया में मन और चैन की ज़िंदगी जी रहे होते लोग। लेकिन जो बीज तुमने बोया है उसका खामियाजा औरों को भी भुगतना पड़ रहा है।  फौजी भाइयों के लिए बस एक सन्देश दूंगा कि ‘जय हिन्द’ और अगर बात भ्रष्टाचार की हो तो भैया नेता जी सॉरी माननीय नेता जी बी भ्रष्टाचार ख़तम करने का बीड़ा तभी उठाना जब आप को सच में लगे की यह काम हो सकता है।  लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ मत बना देना।  नहीं तो फिर से हमें यही गाना गाना पडेगा कि झूठा है तेरा वादा… वादा तेरा वादा.